जयशंकर प्रसाद जी की कृतियां

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ईर्ष्या सर्ग भाग-1 पल भर की उस चंचलता ने खो दिया हृदय का स्वाधिकार। श्रद्धा की अब वह मधुर निशा फैलाती निष्फल अंधकार। मनु को अब मृगया छोड़, नहीं रह गया ...

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